पुष्पेंद्रनाथ मिश्रा द्वारा डायरेक्ट की गई फिल्म घूमकेतु zee 5 पर आज रिलीज हो गई है। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी लीड रोल में हैं और साथ ही साथ अनुराग कशयप, रघुबीर यादव, इला अरुण भी अहम किरदार में हैं। फिल्म का एक संवाद है, “ये काँमेडी बहुत कठिन चीज है, लोगों को हँसी आनी भी तो चाहिए “ ,शायद निर्देशक खुद ही इस बात को भूल गए। वैसे तो फिल्म 4-5 साल पहले ही बन चूकी थी, लेकिन किसी वजह से रिलीज नहीं हो पाई थी।
घूमकेतु की कहानी-
मोहाना गाँव के घूमकेतु लेखक बनना चाहते हैं। हिन्दी फिल्मों के लिए कहानीयाँ लिखना चाहते हैँ और बड़ी-बड़ी हस्तियों को अपने फिल्मों में कास्ट करना चाहते हैं। पहले तो अपने सपनों को पूरा करने के लिए घूमकेतु ‘गुदगुदी’ नाम के एक अखबार नें नौकरी पाने की कोशिश करते हैं जिसमें वह नाकामयाब हो जाते हैं। लोकिन यहाँ से उनको अपने सपने को पूरा करने का एक नया रास्ता नजर आता है। अपने सपने को पूरा करने वह मुंबई भाग जाते हैं। वहाँ निर्माता को अपनी कहानी सुनाते हैं जिसे सुनने के बाद वह घूमकेतु को कोई अच्छी कहानी लाने के लिए 30 दीनों की मौहलत देते हैं। घूमकेतु अलग-अलग तरीके के,जैसे हौरर से लेकर रोमांटिक सारे जौनर्स ट्राई करते हैं। वही अनुराग कशयप, जो एक भ्रष्ट पुलिस वाले का किरदार निभाते हैं, उन्हें 30 दिन दिए जाते हैं घूमकेतु को पकड़ने के लिए। तो क्या घूमकेतु अपना सपना पूरा कर पाएंगे या उससे पहले ही पुलिस उनको दबोच लेगी। ये आपको घूमकेतु देखकर पता चलेगा।
किरदारों का अभिनय
किरदारों ने कोशिश तो बहुत की अपने अभिनय के समोहन में दर्शकों को बाँधने की ,किंतु वह ऐसा करने में असफल रहे। अगर देखा जाए, तो नवाज़ुद्दीन अभिनय में अपने हमेशा की तरह चार चाँद नहीं लगा पाए क्योंकि फिल्म के लेखन में कमी थी। इन सब के बावजूद संतो बुआ का किरदार निभाने वाली इला अरुण ने काफी बखूबी से अपने किरदार को निभाया है। बुआजी के किरदार ने लोगों को जमकर हँसाया। वही रघुबीर यादव ने भी अच्छी कोशिश करी। मूवी में आपको अमिताभ बच्चन का कैमियो भी देखने को मिलेगा जो फिल्म में कुछ देर के लिए जान भरके रख देते हैं।
निर्देशन
फिल्म का लेखन काफी कमजोर करी बनकर साबित हुआ है। इसके संवाद एसे हैं ,कि हँसने की जितनी भी आप कोशिश करो हँसी नहीं आएगी। हो सकता है की थोड़े देर के लिए आपका ध्यान घूमकेतु के संघर्ष पर चला जाए लेकिन मूवी में जो संवाद हैं वो आपके उत्साह पर पानी फेरने जैसा काम करेंगे। इतने अच्छे कलाकार थे फिल्म में, मेकर्स चाहते तो इसका फायदा बेहतरीन ढंग से उठा सकते थे। रंग- बिरंगे कपड़े पहना घूमकेतु किसी घिसे- पिटे फिल्म का दौहराया सीन लगता है। बुआ की डकार, मोटी पत्नी, सौतेली माँ जैसी बातों पर हँसाने की कोशिश की गई है जिसे लिखा ही अजीब ढंग से गया है।
देखें या ना देखें
लौकडाउन का दर्द इस फिल्म को देखने के बाद दोगुना बढ सकता है ,आगे आपकी मर्जी।
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